जातीय राजनीति और नवब्राम्हणवाद
कृष्ण देव सिंह (के डी सिंह )
जो बिचारों,वसूलों की अग्नि से तपकर निकलता है वो बिचार धारा के लिए जीता मरता है। पहले राजनैतिक पार्टीया अपने निष्ठावान कार्यकर्ताओं को वरिष्ठता व योग्यता के हिसाब से मौका देती थी।पर ये क्रम टूट गया।बंश,कूल, गोत्र,रसूख,पैसा देखकर और दलालो को अवसर देने लगी। परिणाम स्वरूप कई राजनीतिक दलों की अतेष्ठी भी हो गई है और समय रहते कुछ और दल नहीं चेते तो वक्त उन्हें भी गर्त में भेजने में संकोच नहीं करेगी । सनातन हिन्दु घर्म के सामान्य वर्ग की जातियो का यह सोच कि जंन्म के आधार पर वे उचे या बडे है .ब्राह्मणवाद कहलाता है|
यह विचार धारा मनुष्य को उच नीच और जाति वर्ग मे बाटता है| वर्तमान भारत मे तुलसी दास द्वारा रचित रामचरित मानस , मनुस्मृति और वंच आफ थाउट को ब्राम्हणवादी प्रवृति का प्रमुख पोषक मान्य रचनाओं के रूप में प्रचारित व प्रसारित है ၊
पूजहि बिप्र शील गुण हीना ,शूद्र पूजहि न .होय प्रवीणा |
बहुजनो ,दलितो शूद्रो मे एक ऐसा वर्ग विकसित हुआ है ,जो समृद्ध है ,पढा लिखा है |इस नवधनाढ्य तवका मे ब्राह्मणवादी सोच का आकर्षण है |जिस परिवेश मे ये पले बढे है,उससे अपने को अलग और उच्च समझते है|अब इनके बाल बच्चे भी जंमजात श्रेष्ठ समझे जाते है|नये तबको का यही सोच ,नव ब्राह्मणवाद कहलाने लगा है|इसका प्रदर्शन अन्य रुपो मे भी होने लगा है |
अब मंदिरो निर्माण , सामान्य वर्ग के मुहल्ले मे उतना नही होता है जितना दलितो ब पिछडे वर्ग के मुहल्ले मे धरल्ले से होते है| भजन हरिकीर्तन,शिव चर्चा ,इन बस्तियो मे कही न कही होते ही रहते है|
एक बात के लिये मै हिन्दु मंदिर और मठो की प्रशंसा करुन्गा कि उन्होने मंदिरो और मठो के साथ साथ कई शिक्षण संस्थान ,अस्पताल व यांत्रियों तथा गरीबों के लिए मुफ्त भोजनालय भी खोले,जिसका लाभ सबो को मिलता है। कई संस्थान व संगठन धार्मिक स्थलों पर अपनी मुफ्त सेवायें भी देते है परन्तु इसके पीछे का उद्देश्य प्रमुखत: पुण्य अर्जित करना ही है।
नव ब्राह्मणवादी दो खेमो मे बँटे है|पहला खेमा अपने को पूर्णतः मनुवाद(संघ) के विलीन कर लिया है|ये नवब्राह्मणवादी अधिक खतरनाक है|ये आये दिन संघ के समर्थन मे आग उगलते रहते है| ये अधिक आक्रामक है|जैसे:विनय कटियार.साक्छी महाराज,कल्याण सिह .उमाभारती वगैरह....
दूसरा खेमा लोहिया वाद का चादर ओढे हमारे बीच है|जिसमे लालू प्रसाद.मायावती.मुलायम सिह सरीखे लोग है|इनके पूजापाठ का पाखण्ड देखकर एक ब्राह्मण भी शरमा जायगा| संपत्ति इतने जमा कर लिये है कि जंम जंमान्तर तक इनके सगे संबंधि भी श्रेष्ठ बने रहेगे|
जातिव्यवस्था एक ब्राह्मणवादी सोच है फलतः जाति आधारित राजनीतिक विचार धारा जिसे लोहियावाद के रूप मे जाना जाता है.अंतिम रूपसे ब्राह्मणवादी राजनीति मे विलीन हो गया प्रतीत होने लगा है l ३सके कई उदाहरण है लेकिन राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय देश के प्रमुख घोषित ख्याति नामधारी नेता तो कांग्रेस में विलीन हो और अधिकांश देश की प्रमुख दक्षिणपंथी विचारधारा राष्ट्रीय स्वंम सेवक संघ में 1 जैसे
कुछ उदाहरण : 1-फायर ब्राण्ढ लोहियावादी नेता जोर्ज फर्णान्डीस अटल बिहारी बाजपेयी ,(भाजपा,) के समर्थक होगये |
2-लोहियावादी , यादव हृदय सम्राट मुलायम सिह मोदी के फैन हो गये |
3- देश के जाने माने सुशाषण बाबु और मागघ नरेश नीतीश कुमार ,भाजपा के गोद मे सत्तासुख भोग रहे है |
इनहोने भाजपा को बिहार मे पैर पसारने के लिए सहयोग देने में कोई कोर कसर वा की नही रखा।
4-दक्षिण की राजनैतिक पार्टिया डी एम के और ए आई डी एम के का संबंध भाजपा के साथ पत्नी और रखैल जैसा है |एक रुठती है तो दूसरी मान जाती है
5-अब सबसे पवित्र लोहियावादी लालू प्रसाद यादव जी की बात करे |अस्सी के दशक मे,लालू के शासनकाल मे ब्राह्मवादी-सामंती गुण्डो ने अनेक नरसंहार किया जिसमे सैकडो भूमिहीन गरीब पिछडे और दलित मारे गये.लेकिन कभी भी लोहियावादी लालू इन पिछडे दलितो के समर्थन मे खडा नही हुए | वाल्कि पुरे बिहार को यादव और मुसलमान राज्य बनाने के साथ साथ अपराधियों को खुला संरंक्षण देकर जंगल राज्य की स्थापना की ।हाल के चुनाव मे भी लालू के लाल-तेजस्वी ने गिरिराज सिह जैसे घोर प्रतिक्रियावादी को जितवाने मे भरपुर मदद किया तथा यादव परिवार भ्रष्टाचार का प्रयाय बन कर रह गया है । (बुधवार समाचार )
रायपुर दिनांक16जुलाई2019
जातीय राजनीति और नवब्राम्हणवाद